अभी कुछ समय पहले ही हमारे देश के एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी जी को नोबल पुरस्कार मिला हैं! उनेह यह पुरस्कार बचपन बचाओ आंदोलन के लिए प्राप्त हुआ हैं! बाल मजदूरी में जकड़े हुए कितने बच्चों को उन्होंने इस दासता से मुक्त कराया हैं! उनेह शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाये प्रदान की हैं! यह एक निसंदेह बड़ा सराहनीय काम हैं!
भारत को अंग्रेजो की दासता से मुक्त हुए ६७ वर्ष हो गए हैं! इतने वर्षो में भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी ,स्वास्थ्य सेवाएं जैसे छेत्रो में सफलता हासिल की हैं लेकिन जहाँ तक देश के सभी बच्चों की शिक्षा, अच्छे पोषण का सवाल हैं, समाज के निचले स्तर पर जीवनयापन करने वाले परिवारो में अभी भी इन सुविधाओं का आभाव हैं! यह समाज का वह निचला तबका हैं जो उच्च तथा मध्यम वर्ग को अपना शारीरिक श्रम देकर अपना जीविकोपार्जन करता हैं! इस श्रेणी में मजदूर , घर में काम करने वाली आया, प्रेस करने वाले रिक्शावाले, कूड़ा उठाने वाली आदि आते हैं! आय कम और वय्य अधिक होने के कारण ये अपने बच्चों को कम उम्र में ही रोजगार में लगा देते हैं! यदि लड़का हैं तो मोटर गेराज, चाय के ढाबो, होटलों, फैक्ट्रियों में और लड़की है तो घरेलु आया के रूप में यह बच्चे ७-८ वर्ष की उम्र से ही कार्य में लग जाते हैं!
छोटे छोटे हाथ , नन्ही नन्ही उंगलिया भोर होते ही कार्य में लग जाते है! घर घर जाकर बर्तन धोना, झाड़ू पोछा लगाना, कपडे धोना गलती होने पर डाँट भी सुनना यही उनकी नियति बन जाती हैं ! शायद शाम होने की प्रतीक्षा इन बच्चों को सबसे ज्यादा होती होगी जिससे इस निष्ठुर दुनिया के क्रियाकलापों से दूर कम से कम वह चैन से सो तो सकें! सबसे बुरी परिस्थति तो उन मासूम बच्चों की होती हैं जो अपना गाँव छोड़कर महानगरो में बंधुआ मजदूर बन जाते हैं! बंगाल, झारखण्ड , नेपाल से कितने बच्चे रोजगार के सुहाने सपने दिखाकर मानव तस्करो दुआरा महानगरों में लाये जाते हैं और ये मासूम बच्चे घरों मेंकाम करने वाले छोटू बन जाते हैं! कितने ही परिवार अपने पैतृक गाँव से गरीब परिवारों के छोटे बच्चो को अपने यहाँ घरेलु नौकर बनाकर ले आते हैं! ये बच्चे भी अक्सर बंधुआ मजदूर जैसी ही जिंदगी गुजारते हैं! इनकी दुनिया बस घरों की चारदीवारी तक सीमित हो जाती हैं! बचपन तो पूरी तरह कुचल जाता हैं!
असल में बाल मजदूरी का मुख्य कारण घोर गरीबी हैं! ज्यादा बच्चे होना, अशिक्षित होना, आय कम व्य ज्यादा होना भी इसका मुख्य कारण हैं! जब भी ऐसे बच्चो के माता पिता से बात की जाती हैं तो उनका यही जवाब होता हैं " हम और हमारे बच्चे कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?" इसलिए अगर बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करना हैं तो सबसे पहले 'छोटा परिवार सुखी परिवार' का प्रसार इस श्रेणी में करना चाहिये! सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार की यह हो वह रोजगार के ऐसे संसाधन विकसित करे खासकर ग्रामीण इलाकों में जिससे इन परिवारो की प्रति व्यक्ति आय बढ़े ! शिक्षा का भी प्रसार हो, और कुछ हम भी अपना सामाजिक दायित्व निभाए! खुद ही सोचे ९-१० वर्ष का बालक कितना काम करेगा!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें