गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

एक कप चाय

एक कप चाय

सुबह उठते ही आपका  सबसे मनपसंद कार्य क्या होता हैएक कप गरम चाय पीना जिसको पीते ही सारा आलस्य दूर भाग जाता है! रात भर की सुस्ती स्फूर्ति में बदल जाती हैं! सुबह के अखबार और चाय की मित्रता तो सदिओं से चली आ रही है! अखबार पढ़ने का मजा चाय के बिना अधूरा ही है! गर्मी, सर्दी, बरसात कोई भी मौसम हो सुबह चाय पीने की परम्परा हमारे परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है! एक खुशनुमा सुबह की शुरुआत एक गर्म गर्म चाय के कप के साथ ही तो होती है!

चाय का इतिहास  भी बहुत पुराना है! कई लोगो का मानना हैभारत में चाय लाने का श्रेय अंग्रेजो को जाता है तो कुछ इसे चीन की देन मानते है! चीन में भी प्राचीन काल से ही चाय का अस्तित्व रहा है लेकिन आज सारे विश्व में चाय पीने पिलाने की परम्परा का चलन है! ईरान में जहाँ बिना दूध की चाय पी जाती है तो भारत में दूध के साथ इसे बनाया जाता है! भारत में तो हर राज्य में चाय का स्वरुप ही निराला है! आप सभी के मन में यह प्रशन होगा की एक साधारण सी चाय हर राज्य में अलग रूप कैसे धारण कर लेती हैबोली, भाषा, मौसम के अनुसार चाय ने भी अपने को हर राज्य के अनुसार ढाल लिया हे!  जैसे हरियाणा, पंजाब  में जहां आप एक कप चाय बनाते समय अक्सर ये वाक्य जरूर सुनेंगे  भई बढ़िया सी चाय बनाना मलाई मार के!  मुंबई में अक्सर चाय के ढाबो में यह वाक्य आम है "ओ छोटू, एक कटिंग स्पेशल चाय तो पिला"  दिल्ली में सर्दियों में सुबह, दोपहर चाय के ढाबो में चाय का ऑडर देते वक्त ये जरूर कहा जाता है " भैया अदरक वाली अच्छी  सी चाय पिलाना"! ये एक कप चाय बड़े कमाल की चीज हैढाबो में, छोटे मोटे होटलों में बैठते हुए, चाय की गरम गर्म चुस्कियों के साथ शुरू हुई गप शप के तो क्या कहने!  राजनीतिक, सामाजिक फ़िल्मी, महंगाई से होते हुए साहित्य, घर गृस्थी से जुडी  ऐसी तमाम कितनी बाते होती है जो हमसब अपने मित्रों के साथ करते है!  सच पूछे तो यह एक कप चाय हमारी जिंदगी में ऐसे रच बस गई है  की इसे अलग करना मुश्किल हे! किसी के सर  में दर्द है तो एक कप चाय बनाना!  कोई काम करके बहुत थक गया तो थकन उतारने का एक ही इलाज है एक कप चाय!  विद्यार्थिओं को देर रात तक पढाई करनी है तो तरोताजा बने रहने के लिए क्या चाहिए, सोचो, वही ना, एक कप चाय!  किसी के घर मेहमान आए तो पानी के बाद क्या परोसा जाता हैएक कप चाय ! और तो और  यह एक कप चाय तो  हमारे देश भारत में रिश्ते भी जोड़ती है! लड़की देखने जाते है तो लड़की ड्राइंग रूम में चाय के प्याले लेकर ही तो आती हे!  यह एक कप चाय तो आमंत्रण करने का भी जरिया है, कभी कही  कोई पुराना मित्र या रिश्तेदार से भेंट होती है तो  यही  कहा जाता है , "कभी घर आओ साथ बैठकर चाय पीते है"  ये चाय की गर्माहट हमारे सामाजिक, पारवारिक रिश्तों को भी गर्माहट देती है!  

अमीर हो या गरीब ईश्वर ने एक कप चाय की सौगात सभी को दी  है  ढाबे में दो रुपए से पांच रुपए में एक कप चाय मिल जाती है तो पांच तारा होटलों में १०० रुपए से ५०० रुपए तक मिल जाती है! और घर की चाय के तो क्या कहने खोलते पानी में जब चाय की पत्तिया अपना रंग और खुश्बू बिखेरती है तो चाय पीने की इच्छा और बलवती हो जाती हे!  वैसे अब इंसानो की तरह चाय ने भी अपने कुछ मानक तय कर दिए है जैसे उच्च वर्ग ग्रीन टी, ब्लैक टी लेमन टी आदि पीता है वही मध्यम वर्ग अभी भी वही परम्परागत  चाय यानि की दूध, चीनी, पत्ती वाली चाय पीता हैअब रहा निम्न वर्ग, तो जिस दिन दूध खरीद सके तो दूध वाली चाय पी ली नहीं तो फीकी चाय ही चल जायगी!  पर  चाय पीने पिलाने  का ये दौर हर वर्ग में चलता रहेगा  यही तो खासियत है इस एक कप चाय की!  


बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

बाल मजदूरी एक अभिशाप


अभी कुछ समय पहले ही हमारे देश के एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी जी को नोबल पुरस्कार मिला हैं!  उनेह यह पुरस्कार बचपन बचाओ आंदोलन के लिए प्राप्त हुआ हैं!  बाल मजदूरी में जकड़े हुए कितने बच्चों को उन्होंने इस दासता से मुक्त कराया हैं!  उनेह शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाये प्रदान की हैं! यह एक निसंदेह बड़ा सराहनीय काम हैं!

भारत को अंग्रेजो की दासता से मुक्त हुए ६७ वर्ष हो गए हैं!  इतने वर्षो में भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी ,स्वास्थ्य सेवाएं जैसे छेत्रो में सफलता हासिल की हैं लेकिन जहाँ तक देश के सभी बच्चों की शिक्षा,  अच्छे पोषण का  सवाल हैं, समाज के निचले स्तर  पर जीवनयापन करने  वाले परिवारो   में  अभी भी इन सुविधाओं का   आभाव हैं!  यह समाज का वह निचला तबका हैं जो उच्च तथा मध्यम वर्ग को अपना शारीरिक श्रम देकर अपना जीविकोपार्जन करता हैं!  इस  श्रेणी में मजदूर , घर में काम करने वाली आया, प्रेस करने वाले रिक्शावाले, कूड़ा उठाने वाली आदि आते हैं!  आय कम और वय्य अधिक होने के कारण ये अपने बच्चों को कम  उम्र में ही रोजगार में लगा देते हैं!  यदि लड़का हैं तो मोटर गेराज, चाय के ढाबो, होटलों, फैक्ट्रियों में और लड़की है तो घरेलु आया के रूप में यह बच्चे ७-८ वर्ष की उम्र से ही कार्य में लग जाते हैं!

छोटे छोटे हाथ , नन्ही नन्ही उंगलिया भोर होते ही कार्य में लग जाते है!  घर घर जाकर बर्तन धोना, झाड़ू पोछा  लगाना, कपडे धोना गलती होने पर डाँट भी सुनना  यही उनकी नियति बन जाती हैं !  शायद  शाम होने की प्रतीक्षा  इन बच्चों को सबसे ज्यादा होती होगी जिससे इस निष्ठुर दुनिया के क्रियाकलापों से दूर कम  से कम  वह चैन से सो तो सकें!  सबसे बुरी परिस्थति तो उन मासूम बच्चों की होती हैं जो अपना गाँव छोड़कर महानगरो में बंधुआ मजदूर बन जाते हैं! बंगाल, झारखण्ड , नेपाल से कितने बच्चे रोजगार के सुहाने सपने दिखाकर मानव तस्करो दुआरा महानगरों  में लाये जाते हैं और ये मासूम बच्चे घरों मेंकाम करने वाले छोटू बन जाते हैं!  कितने ही परिवार अपने पैतृक गाँव से गरीब परिवारों के छोटे बच्चो को अपने यहाँ घरेलु नौकर  बनाकर ले आते हैं!  ये बच्चे भी अक्सर बंधुआ मजदूर जैसी ही जिंदगी गुजारते  हैं!  इनकी दुनिया बस घरों की चारदीवारी तक सीमित हो जाती हैं!  बचपन तो पूरी तरह कुचल जाता हैं!

असल में बाल मजदूरी  का मुख्य कारण घोर गरीबी हैं!  ज्यादा बच्चे होना, अशिक्षित होना, आय कम व्य ज्यादा होना भी इसका मुख्य कारण हैं!  जब भी ऐसे बच्चो के माता पिता से बात की जाती हैं तो उनका यही जवाब होता हैं " हम और हमारे बच्चे कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?" इसलिए अगर  बाल मजदूरी को  जड़ से खत्म करना हैं तो सबसे पहले 'छोटा परिवार सुखी परिवार' का प्रसार इस श्रेणी में करना चाहिये! सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार की यह हो वह रोजगार के ऐसे संसाधन विकसित करे खासकर ग्रामीण इलाकों में  जिससे इन परिवारो की प्रति व्यक्ति आय बढ़े ! शिक्षा का भी प्रसार हो, और कुछ हम भी अपना सामाजिक  दायित्व निभाए!  खुद ही सोचे ९-१० वर्ष का बालक कितना काम करेगा!

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

होली आई


आज तो महके हे टेसू के फूलो से
हर डाली
फागुन के फगुआ की बात निराली
देखो रे देखो होली आई मतवारी

भर लो रंगो से पिचकारी 
फिर रंगो की हो ऐसी बौछार
हंसी ठहाकों की चले  फुहार
सबको अबीर गुलाल लगा दो
द्वेष ईर्ष्या  को ह्रदय से मिटा दो

शरबत ठंडाई पीलो
भूल के सारे बैर भाव
आज तो सतरंगी दुनिया में  जी लो




नेता जी का चुनावी दौरा

नेता जी का चुनावी दौरा 

चुनाव नजदीक आने लगे 
नेता जी घर घर जाने लगे 
कहने लगे जनता से 
इस बार देना मुझको ही वोट 
सत्ता में आया तो महंगाई घटाउँगा 
गरीबी मिटाऊंगा 
सोच रही जनता बेचारी 
कैसे नेता बने भिखारी 
झूठी इनकी कस्मे 
झूठे इनके वादे 
कभी न पुरे कर पाते 
ये जनता के इरादे 
सत्ता में आये तो 
कुर्सी से चिपक जायेंगे 
विकास की योजनाओ  को 
ये फाइल बनाएंगे 

neta ji ka chunavi daura

हास्य कविता
                                                           नेता जी का चुनावी दौरा 

चुनाव नजदीक आने लगे 
नेता जी घर घर जाने लगे 
कहने लगे भाईओं और बहनो 
इस बार देना मुझको ही वोट 
सत्ता में आया तो महंगाई  घटाउँगा 
गरीबी मिटाऊंगा 
सोच रही जनता बेचारी 
कैसे नेता बने भिखारी 
झूठी इनकी कस्मे 
झूठे   इनके वादे 
कभी न पूरा कर पाते ये   जनता के इरादे 
सत्ता में आये तो कुर्सी से चिपक जायेंगे 
विकास की योजनाओं को ये फाइल बनायेगे